14 वर्ष पहले
रविवार, 5 अक्टूबर 2008
फरमान लागू है... जरा बच के
विश्व अहिंसा दिवस से एक फरमान लागू है ' सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान वर्जित है'....पकड़े गए तो जुर्माना...लोग डरें या ना डरें, मैं तो डरा हुआ हूं....एक छोटी सी सिगरेट...और दाम दो सौ रुपए...सोच कर ही पर्स पतला हुआ जाता है....बजाए जुर्माने के अगर एक सिगरेट की कीमत ही दो सौ हो जाए तब शायद फर्क नहीं पड़ता...लेकिन क्यां करें जुर्माने से गुनाह का एहसास होता है....और हम जैसा कानून की इज्जत करने वाला इंसान गुनाह से कोसों दूर रहना चाहता है...लेकिन मजबूरी है कि सिगरेट चूमने की आदत सी हो गई है....लाख कोशिशों के बाद भी छूटती ही नहीं...हरिबंश राय बच्चन को अपनी मधुशाला से जो लगाव रहा होगा...वैसा ही लगाव मुझे सिगरेट से है....अंतर सिर्फ इतना है कि उनका लगाव शाब्दिक था...और मेरा आत्मिक... अब सिगरेट पीता हूं तो मरुंगा भी...हांलाकि मौत तो सबको आनी है...लेकिन हम सिगरेटचियों को सूचित करके आती है....अब सूचना के बाद भी तैयारी न हो तो ठीक बात नहीं...सो मैने शुरू कर दी है अपने क्रिया कर्म की तैयारी भी....बस एक ही इच्छा है, मेरी चिता के लिए चंदन की लकड़ियों को तकलीफ न मिले क्योंकि जलना उनकी फितरत नहीं...मजबूरी में जला दी जाती हैं....अगर जलना ही है तो सिगरेट जले ...जो जलती भी है...और जिसके जलने से सरकार भी जल रही है....लेकिन सरकार करे भी तो क्या करे...उसकी और मेरी तकलीफ कमोवेश एक जैसी है....उसे भी सिगरेट से कोई दुश्मनी नहीं है....नफरत तो कमबख्त उस धुंए से है...जो लोगों का नाश कर रही है....अगर धुंआ नहीं होता तो इस प्रतिबंध से शायद बचने में आसानी होती....अरे भई ! शराब बच गई न...क्योंकि उसको पीने में धुआं नहीं निकलता...सिगरेट के धुंए से मेरी भी शिकायत है...कई बार रंगे हाथों पकड़ा गया हूं....खुद को तो छिपा लेता हूं, लेकिन ये धुंआ है न, रास्ता बना ही लेता है....
लेकिन जो हुआ सो हुआ...अब उस पर सिर फोड़ने से क्या फायदा...क्या हो गया इस पर बहस करने से अच्छा होगा कि क्यों हुआ इस पर बहस किया जाए...क्योंकि वहीं से कुछ सामाधान निकलने की संभावना है....बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ये कैंसर – वैसर होने का जो डर सरकार को है, वो तो बहाना भर है...असली सच्चाई तो कुछ और ही है....और वह है रुपईय्या....सरकार रोज ही कमाई के नए – नए तरीके खोज रही है....सारे मंत्रालय अपना खजाना भर रहे हैं....लालू का मंत्रालय तो आप देख ही रहे हैं....अब इस सिगरेट-बीड़ी से सरकार को आमदनी तो बहुत होती है...लेकिन केवल उसी के भरोसे रहने सो तो काम चलेगा नहीं....एक बात तो आपको मालूम ही है कि एक अच्छा शासक वो है जो अपने राज्या की सीमा को कम न होने दे, लेकिन जो शासक अपनी सीमाओं को बढ़ा दे वो तो महान ही कहा जाएगा न...सो हो गए हमारे शासक लोग भी महान...बढ़ा ही लिया कमाई का तरीका....सिगरेट तो बिकेगी ही...पकड़े गए तो जुर्माने की रकम भी खजाने में....
अब सवाल यह है कि हम क्या करें....जुर्माने की वजह से खुलेआम सिगरेट पीना दूभर हो गया है...पकड़े जाने के डर में ही एक सिगरेट खत्म हो जाती है...असली चिंता के लिए दूसरी जलानी पड़ती है...अब सहन नहीं होता....इस तरह कायरों की जिंदगी जीना...अब सरकार के प्रतिनिधियों से बात करनी ही पड़ेगी...मेरे पास वक्त थोड़ा कम है...इसलिए यहीं पर अपनी बातें बता दे रहा हूं...सरकारी नुमाइंदे ध्यान दें......
पहले यहां हम यह क्लीयर कर दें कि सरकार किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर हमारी बात न समझे...सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाना हमारा मकसद नहीं है...हम तो सब कुछ व्यवस्थित चाहते हैं...कुछ बातें मान लें...आप भी खुश हम भी खुश....
1. सिगरेटचियों से वसूली जाने वाली रकम को जुर्माना न कहा जाए....बल्कि इसे स्वास्थ्य सहयोग राशि कही जाए
2. नियमित रूप से सिगरेट पीने वालों को उनकी राशि में छूट का प्रावधान हो
3. पेमेंट करने के मोड में भी फ्लैक्सीविलटी हो...मसलन चेक, कार्ड, ड्राफ्ट आदि
4. रेलवे, बस और मैट्रो की ही तरह सिगरेट पीने वालों को भी वनडे, वीकली और मंथली पास इश्यू किया जाए
5. पास बनाने के लिए अलग से काउंटर खोले जाएं, जिससे हमें भीड़ का सामना न करना पड़े
6. स्वेच्छा से सहयोग करने वालों को मंत्रालय की तरफ से कुछ बोनान्जा ऑफर मिले.
7. बसों में महिला, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सीनियर सीटिजन की ही तरह सीट आरक्षित हो, जिस पर साफ- साफ लिखो हो केवल "वेटिंग फॉर डेथ" के लिए
8. ट्रेनों के रिजर्वेशन में भी कुछ ऐसी ही सुविधाए उपलब्ध कराई जाएं...
शेष ठीक है... हम सहयोग के लिए वचनबद्ध हैं....जो हमारे बच्चे निभाएंगे....मामला नया है, इसलिए लागू होने के कुछ दिन बाद इसके और लूप होल सामने आएंगे...इसलिए हर दो महीने पर द्विपक्षीय वार्ता अपेक्षित है....
धन्यवाद
वैद्धानिक चेतावनी : सिगरेट/बीड़ी पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
अतुल भाई आप हिट हो गए हो...बकैती चल पड़ी आपकी...सिगरेट पीने वाले बकैत भी कम नहीं हैं आ रहे होंगे आपके ब्लॉग पर कश पर कश लगाने
एक टिप्पणी भेजें