14 वर्ष पहले
शनिवार, 29 नवंबर 2008
बनना नहीं भगवान
मैने सोचा था कि इक रोज मेरी भी बुत बने
मैं किसी मंदिर में रहूं लोग मेरे दर को चूमें
मैं जो हर बुत से कभी मांग कर पाया ही नहीं
दे दूं हर वो चीज कि सभी लोग खुशी से झूमें
मगर मैं आज बुत हूं मेरे पास लोग आते हैं
न जाने कैसी-कैसी फरियाद मेरे दर पर वो फरमाते हैं
अब समझा हूं कि आसान कितना है किसी से मांग लेना
दर पर प्रसाद चढ़ाकर बड़ा वरदान लेना
भिखारी बन कर मैं गुजार लूंगा जिंदगी अपनी
बहुत मुश्किल है मेरे दोस्त यहां भगवान बनना
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2 टिप्पणियां:
भिखारी बन कर मैं गुजार लूंगा जिंदगी अपनी
बहुत मुश्किल है मेरे दोस्त यहां भगवान बनना
....सुन्दर भाव -सुन्दर अभिव्यक्ति !!
very nice poem
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