शनिवार, 29 नवंबर 2008

बनना नहीं भगवान



मैने सोचा था कि इक रोज मेरी भी बुत बने
मैं किसी मंदिर में रहूं लोग मेरे दर को चूमें
मैं जो हर बुत से कभी मांग कर पाया ही नहीं
दे दूं हर वो चीज कि सभी लोग खुशी से झूमें

मगर मैं आज बुत हूं मेरे पास लोग आते हैं
न जाने कैसी-कैसी फरियाद मेरे दर पर वो फरमाते हैं
अब समझा हूं कि आसान कितना है किसी से मांग लेना
दर पर प्रसाद चढ़ाकर बड़ा वरदान लेना

भिखारी बन कर मैं गुजार लूंगा जिंदगी अपनी
बहुत मुश्किल है मेरे दोस्त यहां भगवान बनना

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

' रिंकी और रिंकू का साथ '



पिछले कुछ दिनों से मैं बहुत परेशान हूं…दुनिया भर में आर्थिक तंगी है...बावजूद इसके हमारी सरकार सबके लिए कुछ न कुछ कर रही है....पर मेरे लिए कुछ हो ही नहीं रहा है....वैसे मुझे इस बात की तकलीफ कम है कि मेरे लिए कुछ नहीं हो रहा है...इस बात का गम ज्यादा कि दूसरों पर मेहरबानी होती जा रही है....छठे वेतन आयोग की सिफारिशे लागू कर दी गईं....कर्मचारियों के लिए दिवाली के बोनस का ऐलान हो रहा है....क्रीमीलेयर की सीमा भी बढ़ा दी गई....रिजर्वेशन कोटे की सीटों को खाली रखने का फरमान लागू हो गया....लेकिन इनमे से किसी दायरे में मैं नहीं आता..सो मैं तो अपने आपको ठगा सा ही महसूस कर रहा हूं...लेकिन पिछले एक हफ्ते से मैं काफी खुश हूं..देर से ही सही सरकार को हमारी सुध आ गई...और कुछ दया दृष्टि हम पर भी होने वाली है....हांलाकि अभी इन खुशखबरियों पर कुछ जलने वाले लोगों को ऐतराज है...लेकिन साथ देने वालों के रुख से तो लग रहा है कि अंत में खुशखबरी मिल ही जाएगी....अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर कौन सी खबर है जिसने मुझे इतना खुश कर दिया कि मुझे दूसरों की खुशी से भी जलन नहीं हो रही है....तो सुनिए...सरकार अब कानून बनाने जा रही है...जिसके तहत हम असली आजादी पा सकेंगे...मतलब कि अब हम ' रिंकी और रिंकू ' दोनो के साथ कानूनन रह सकते हैं... इशारा तो आप समझ ही गए होंगे...विस्तार से बताता हूं...पहली खबर है समलैंगिकता को मान्यता देने की....यानि 'रिंकू' अब मेरे साथ रह सकता है...बिना किसी संकोच के...मामले पर बहस शुरु हो गई है...लेकिन कुछ लोग अभी भी इसके विरोध में लगे हैं.. उनको हमारी खुशी देखी नही जा रही है...उनको क्या मालूम साथ रहने का सुख....लेकिन गलती उनकी नहीं है...उम्र का तकाजा है....साठ के बाद इंसान सठिया ही जाता है...हम लोगों को उनकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए...जेनरेशन गैप तो होता ही है...समझाबुझा लिया जाएगा...एक झटके में इतने बड़े झटके से तो इंसान झटक ही जाता है....लेकिन हम आशन्वित हैं...आखिर कुछ नई सोच के लोगों ने हमारा झंडा जो थाम रखा है...हमें उम्मीद ही नहीं यकीन है कि रामदौस जी अबकी तो जंग जीत ही जाएंगे...हम जैसे लाखों लोगं की दुआएं उनके साथ हैं....वैसे हम लोगों के जंग जीतने की एक वजह यह भी है कि इसका विरोध करने वालो के पास कोई आधार नहीं है...भारतीय संस्कृति और सभ्यता को आधार बनाकर कब तक लड़ेंगे...अरे भाई...मॉर्डनाइजेशन भी कोई चीज होती है कि नहीं....दुनिया तरक्की कर रही है...और आप संस्कृति का रोना रो रहे हैं....अरे इसको लागू तो करिए धीरे-धीरे यही आपकी संस्कृति हो जाएगी....और इसमें गलती तो हम लोगों की है नहीं.. इसको बढ़ावा तो आप ही लोगों ने दिया है...घर से लेकर बाहर तक, जहां गए...लड़को को लड़कों के साथ रख दिया...लड़कियों को लड़कियों के साथ रख दिया...ऐसे मौके पर भावनाएं जागी और तोड़ गईं सारे बंधन ...पहले कुछ झिझक तो जरुर हुई, लेकिन अब तो आदत बन गई है औऱ मजबूरी भी....अब आप रोक लगाने की बात करोगो तो बगावत तो करुंगा ही....तभी थोड़ी सी समझदारी दिखाए होते ...और लड़के – लड़की में भेद ना किए होते ...तो यह दिन देखना ही क्यों पड़ता...अब तो भईया हम नहीं मानेगें...अंबुमणि जी बेस्ट ऑफ लक.....

अब बताते हैं आपको दूसरी खुशखबरी....जो बहुत खास है...और हमारी आजादी की तरफ बढ़ा एक और कदम....एक ऐसा कानून बनने जा रहा है...जो हमें वास्तव में सारे बंधनों से आजाद कर देगा और हम गर्व से कह सकेगें 'मेरी मर्जी'....मैं चाहे ये करुं...मैं चाहे वो करुं....मेरी मर्जी....न समाज का बंधन...न कानून का बंधन...न पंडित...न कोर्ट...न कचहरी...न पुलिस...न थाना...सबसे आजाद....किसी के साथ रहो...'पिंकी के साथ या रिंकी के साथ'....सरकार को कोई वास्ता नहीं...विवाह जैसे बोरियत भरे रस्म से भी आजादी ...और बिना मतलब के होने वाले खर्चों से भी आजादी...लेकिन दुश्मनों की कोई कमी तो होती नहीं है...सो हमारी यह खुशी भी उनको बर्दाश्त नहीं हो सकी...करने लगे मीन मेख....फिर वही संस्कृति और सभ्यता का रोना....अरे मार्डन बनो भाई मार्डन....कुछ देश तो इतने मार्डन हैं कि उनकी आधी आबादी ही हम जैसों की उपज है....न मां का पता ....न बाप का ठिकाना....जब जिसे चाहा मां बना लिया ...जिसे चाहा बाप कह दिया....इसको कहते हैं एकता...सारा देश अपना है ...और हम सारे देश के हैं.....लेकिन विरोधियों का हमें कोई डर नहीं है....विरोधी है, विरोध करना उनका अधिकार है....यहां तो हमको शिकायत महाराष्ट्र सरकार से है...मंजूरी तो दे दी...लेकिन छोड़ दिया थोड़ा सा नुख्स...कह दिया पर्याप्त समय तक साथ रहने वालों को ही मान्यता है...अब पर्याप्त क्या होता है भाई....हर इंसान के लिए पर्याप्त की परिभाषा अलग अलग है...सबकी अपनी-अपनी क्षमता है...अपनी –अपनी सोच है...और जिंदगी में सब कुछ हमारी सोच ही डिसाइड कराती है....अब कुछ लोग अपनी एक ही जिंदगी से त्रस्त हैं...बिचारे समझ ही में नहीं आ रहा है...कि जी रहे हैं कि मर रहे हैं...और एक मैं हूं... सोचता हूं ....इसी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लूं....कई जिंदगी जीने के लिए कई लोगों का साथ होना भी जरुरी है....और जब एक ही के साथ पर्याप्त समय बिताने लगेंगे तो कई जिंदगियों का क्या होगा...और ऊपर से एक और संकट है...मान जाइए एक के साथ ही कुछ लंबे अरसे तक सेटलमेंट कर भी लें ...और अचानक वो बिदक गई तो...हम कहां जाएंगे...रोक तो सकते नहीं ...न समाज का वास्ता देकर और न ही कानून का डर दिखाकर.... तो हम तो आ गए सड़क पर...लंबा समय जब एक ही के साथ गुजार लेंगे ....और हो जाएंगे उम्र दराज..तो इस ढ़ांचे को घास कौन डालेगा....तो मेरा तो यही सुझाव है कि इसमें थोड़ी सी फ्लैक्सीविलिटी की जरुरत है...लेकिन कुल मिलाकर मैं खुश हूं....और सरकार को धन्यवाद देना चाहूंगा और उनको भी मुबारकबाद जो एक साथ रहना चाहते हैं ' रिंकी और रिंकी के साथ'

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

फरमान लागू है... जरा बच के


विश्व अहिंसा दिवस से एक फरमान लागू है ' सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान वर्जित है'....पकड़े गए तो जुर्माना...लोग डरें या ना डरें, मैं तो डरा हुआ हूं....एक छोटी सी सिगरेट...और दाम दो सौ रुपए...सोच कर ही पर्स पतला हुआ जाता है....बजाए जुर्माने के अगर एक सिगरेट की कीमत ही दो सौ हो जाए तब शायद फर्क नहीं पड़ता...लेकिन क्यां करें जुर्माने से गुनाह का एहसास होता है....और हम जैसा कानून की इज्जत करने वाला इंसान गुनाह से कोसों दूर रहना चाहता है...लेकिन मजबूरी है कि सिगरेट चूमने की आदत सी हो गई है....लाख कोशिशों के बाद भी छूटती ही नहीं...हरिबंश राय बच्चन को अपनी मधुशाला से जो लगाव रहा होगा...वैसा ही लगाव मुझे सिगरेट से है....अंतर सिर्फ इतना है कि उनका लगाव शाब्दिक था...और मेरा आत्मिक... अब सिगरेट पीता हूं तो मरुंगा भी...हांलाकि मौत तो सबको आनी है...लेकिन हम सिगरेटचियों को सूचित करके आती है....अब सूचना के बाद भी तैयारी न हो तो ठीक बात नहीं...सो मैने शुरू कर दी है अपने क्रिया कर्म की तैयारी भी....बस एक ही इच्छा है, मेरी चिता के लिए चंदन की लकड़ियों को तकलीफ न मिले क्योंकि जलना उनकी फितरत नहीं...मजबूरी में जला दी जाती हैं....अगर जलना ही है तो सिगरेट जले ...जो जलती भी है...और जिसके जलने से सरकार भी जल रही है....लेकिन सरकार करे भी तो क्या करे...उसकी और मेरी तकलीफ कमोवेश एक जैसी है....उसे भी सिगरेट से कोई दुश्मनी नहीं है....नफरत तो कमबख्त उस धुंए से है...जो लोगों का नाश कर रही है....अगर धुंआ नहीं होता तो इस प्रतिबंध से शायद बचने में आसानी होती....अरे भई ! शराब बच गई न...क्योंकि उसको पीने में धुआं नहीं निकलता...सिगरेट के धुंए से मेरी भी शिकायत है...कई बार रंगे हाथों पकड़ा गया हूं....खुद को तो छिपा लेता हूं, लेकिन ये धुंआ है न, रास्ता बना ही लेता है....
लेकिन जो हुआ सो हुआ...अब उस पर सिर फोड़ने से क्या फायदा...क्या हो गया इस पर बहस करने से अच्छा होगा कि क्यों हुआ इस पर बहस किया जाए...क्योंकि वहीं से कुछ सामाधान निकलने की संभावना है....बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ये कैंसर – वैसर होने का जो डर सरकार को है, वो तो बहाना भर है...असली सच्चाई तो कुछ और ही है....और वह है रुपईय्या....सरकार रोज ही कमाई के नए – नए तरीके खोज रही है....सारे मंत्रालय अपना खजाना भर रहे हैं....लालू का मंत्रालय तो आप देख ही रहे हैं....अब इस सिगरेट-बीड़ी से सरकार को आमदनी तो बहुत होती है...लेकिन केवल उसी के भरोसे रहने सो तो काम चलेगा नहीं....एक बात तो आपको मालूम ही है कि एक अच्छा शासक वो है जो अपने राज्या की सीमा को कम न होने दे, लेकिन जो शासक अपनी सीमाओं को बढ़ा दे वो तो महान ही कहा जाएगा न...सो हो गए हमारे शासक लोग भी महान...बढ़ा ही लिया कमाई का तरीका....सिगरेट तो बिकेगी ही...पकड़े गए तो जुर्माने की रकम भी खजाने में....
अब सवाल यह है कि हम क्या करें....जुर्माने की वजह से खुलेआम सिगरेट पीना दूभर हो गया है...पकड़े जाने के डर में ही एक सिगरेट खत्म हो जाती है...असली चिंता के लिए दूसरी जलानी पड़ती है...अब सहन नहीं होता....इस तरह कायरों की जिंदगी जीना...अब सरकार के प्रतिनिधियों से बात करनी ही पड़ेगी...मेरे पास वक्त थोड़ा कम है...इसलिए यहीं पर अपनी बातें बता दे रहा हूं...सरकारी नुमाइंदे ध्यान दें......

पहले यहां हम यह क्लीयर कर दें कि सरकार किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर हमारी बात न समझे...सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाना हमारा मकसद नहीं है...हम तो सब कुछ व्यवस्थित चाहते हैं...कुछ बातें मान लें...आप भी खुश हम भी खुश....
1. सिगरेटचियों से वसूली जाने वाली रकम को जुर्माना न कहा जाए....बल्कि इसे स्वास्थ्य सहयोग राशि कही जाए
2. नियमित रूप से सिगरेट पीने वालों को उनकी राशि में छूट का प्रावधान हो
3. पेमेंट करने के मोड में भी फ्लैक्सीविलटी हो...मसलन चेक, कार्ड, ड्राफ्ट आदि
4. रेलवे, बस और मैट्रो की ही तरह सिगरेट पीने वालों को भी वनडे, वीकली और मंथली पास इश्यू किया जाए
5. पास बनाने के लिए अलग से काउंटर खोले जाएं, जिससे हमें भीड़ का सामना न करना पड़े
6. स्वेच्छा से सहयोग करने वालों को मंत्रालय की तरफ से कुछ बोनान्जा ऑफर मिले.
7. बसों में महिला, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सीनियर सीटिजन की ही तरह सीट आरक्षित हो, जिस पर साफ- साफ लिखो हो केवल "वेटिंग फॉर डेथ" के लिए
8. ट्रेनों के रिजर्वेशन में भी कुछ ऐसी ही सुविधाए उपलब्ध कराई जाएं...
शेष ठीक है... हम सहयोग के लिए वचनबद्ध हैं....जो हमारे बच्चे निभाएंगे....मामला नया है, इसलिए लागू होने के कुछ दिन बाद इसके और लूप होल सामने आएंगे...इसलिए हर दो महीने पर द्विपक्षीय वार्ता अपेक्षित है....
धन्यवाद
वैद्धानिक चेतावनी : सिगरेट/बीड़ी पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

बंधुओं क्षमा प्रार्थी हूं

...उन लोगों से जो इस विषय को सार्थक मानते हैं....और उनसे भी जो समझते हैं कि यह विषय निरर्थक है....सार्थक वालों से इसलिए कि इस बहस में मैं देर से क्यों आया....और निरर्थक वालों से इसलिए कि इस बहस में मैं आया ही क्यूं... वैसे मेरी व्यक्तिगत राय भी सचिन जी की ही तरह है...जहां दिल और दिमाग दोनों में ही द्वंद है....
मैं ब्लॉग नहीं लिखता...लेकिन जबसे यह प्रश्न ब्लॉग बाजार में आया है..अचानक लोगों की लेखन क्षमता तेज हो गई है...सारे समझदार लोग इस विषय पर लिख रहे हैं...और आपस में बातें करके यह बता रहते हैं कि जिसने नहीं लिखा उसकी कोई सोच नहीं है..मतलब कि उसके अंदर सोचने की ताकत नहीं है...तो मैं सिर्फ इसलिए लिख रहा हूं कि लोग समझ सकें कि मैं भी सोचता हूं...और समझदार भी हूं...वैसे इस विषय पर लिखने की अंतिम प्रेरणा मुझे मेरे ऑफिस में काम करने वाले एक शख्स से मिली...जो तबियत खराब होने की वजह से ऑफिस नहीं आ पाए...लेकिन ऑफिस टाइम खत्म होने के चंद घंटे पहले ऑफिस में उजागर हुए...और अपने ब्लॉग धर्म का बखूबी पालन किया...तब तो मुझे यकीन हो गया कि यह काम सिर्फ महान लोगों का ही है...सो पेश है मेरी महानता.....
मैं बिहार से सटा उत्तर प्रदेशी हूं
...पर बिहार के तिलिस्म से अभी भी अपरिचित सा ही हूं....लेकिन जितना समझ पाया हूं, वह यह कि जब तक मैं अपने प्रदेश में रहा ' बिहारवाद ' बिहार में रहने वाले लोगों के पक्ष या विपक्ष की बात थी...लेकिन जबसे दिल्ली में हूं इस वाद से अपने आपको अलग नहीं पाता हूं...इच्छा हो या न हो अपने आपके बिहारियों से अलग नहीं पाता हूं....ज्यादा भीतर तक न जाएं तो यहां पश्चिम को छेड़कर सारे यूपी वाले बिहारी हैं....लोग यह कह सकते हैं कि यूपी, एमपी, राजस्थान वाले अपना वाद नहीं चलाते...मैं मानता हूं कि यह कुछ हद तक सही है....लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि हमारे अंदर यह सोच है ही नहीं...बल्कि हम सभी के अंदर यह बात पलती है कि ' अपने घर में दिया जलाके दूसरे घर में उजाला कईल जाला '... लेकिन हम अपनी ही कब्र खोदने में लगे हैं...तो ऐसा कैसे संभव है...मैने कल ही दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग का एक विज्ञापन पढ़ा, जिसमें लिखा था..." एकता में शक्ति है, आपस में बं ट ने से ह म टू ट जा एं गे"...हम शायद आज भी एक नहीं हैं और अगर बिहार में यह एकता है तो इससे चिढ़ने की जरुरत नहीं है....हम तो चाहते हैं कि सारा प्रदेश अपना अपना वाद चलाए...कम से कम प्रदेश में तो एकता होगी...जिस दिन हम प्रदेश वासी आपस में एक होने का हुनर सीख जाएंगे...सारा देश एक हो जाएगा... क्योंकि जैसे जैसे हम अपनी सीमाओं से दूर होते हैं...शायद एक होते हैं...दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने जब कहा कि बिहार और यूपी वाले अनुशासनहीन होते हैं, तो हर यूपी वाला बिहार के साथ खड़ा दिखा......जब राज ठाकरे ने कहा कि उत्तर भारतीयों मुंबई छोड़ो, तब सारा उत्तर भारत बिहार के साथ खड़ा दिखा....और जब सायमंड्स ने हरभजन पर आरोप लगाए तब पूरा देश एक साथ खड़ा दिखा...
तो बिहारवाद ही क्यों चलिए भारतवाद पर बहस करते हैं... बिहारवाद के पक्ष और विपक्ष में बहस करते करते दोनों ही खेमे के लोगों ने अपनी स्वतंत्रता की सीमा का उल्ल्घंन करके स्वच्छंदता को अपना लिया...जो मेरी राय में ठीक नहीं है....एक सज्जन ने तो यहां तक लिखा कि "...............से बच्चा पैदा नहीं होता "....अरे भाई ये तो सबको मालूम हो कि ऐसा नहीं होता....तो क्या आपकी बात सिर्फ इसलिए मान ली जाए कि आपने उसी तरह से बच्चा पैदा करने की कोशिश की और नाकाम रहे....और आप भुक्तभोगी हैं इसलिए आपकी बात प्रामाणिक है...तो चलिए मान लिया कि ......लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल इस पैदाइशी तरीके पर इनको ही संदेह है....उनका जबाब देने वालों ने तो इसके प्रचार और प्रसार की पूरी जिम्मेदारी का ही लबादा ओढ़ लिया है....और वहां तक उतर आए हैं जो इन सभी लोगों की सतही लड़ाई को उजागर कर रही है....
भाई सारी बातें बलॉग पर ही डाल देंगे ?.....सामने खड़े होकर भी बात की जा सकती है....निपट लीजिए ...खास को आम करने की क्या जरुरत है....