रविवार, 21 अगस्त 2011

खामोशी से पहले का शोरगुल ?






एक आसान सी बात है कि जब घाव मामूली हो तो बिना मरहम के भी रहा जा सकता है...लेकिन जब पीड़ा असहनीय हो तो दवा के लिए बेचैनी बढ़ जाती है...हर दवा इस्तेमाल की जाती है...भले वो दर्द खत्म करने की बजाय थोड़ा कम करने वाली ही क्यों न हो...यही पूरा फार्मूला है सरकार का...जो पूरे अन्ना प्रकरण में अपनाया गया है....सरकार भ्रष्टाचार रूपी इस घाव को इतना बड़ा कर देना चाहती है कि जनता त्राहीमाम कर दे...ऐसे में घाव भरने की दवा के बजाय दर्द कम करने की दवा भी कारगर साबित होगी...सरकार ने इसके लिए तैयारी भी शुरु कर दी है...कांग्रेस की मुखिया देश के बाहर हैं...लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि वो पूरे मामले से अनभिज्ञ हैं...उन्हें पल पल की खबर है...लेकिन वो मौन हैं....क्योंकि यही मौन तो विजय का मूलमंत्र है...मैडम आंएगी और बोलेंगी भी...लेकिन थोड़ा वक्त दीजिए...अभी अपने दर्द को और बढाइए...अभी पूरे देश का ध्यान इस पर आने दीजिए...इतना, कि हर तबाही इस मुहिम के आगे छोटी नजर आने लगे...फिर देखिए..एक चमत्कार होगा...मैडम आएंगी, और सरकार की तरफ से की गई सभी गलतियों का अफसोस मनाते हुए सबको शटअप कर देंगी...हो सकता है सारा ठिकरा मनमोहन पर फोड़कर राहुल बेटे को कुर्सी सौंप दी जाए...जो आपको आपका बिल देने पर राजी हो जाएंगे...और इस उदारता के बदले आप भी थोड़े बहुत संशोधन की इजाजत तो दे ही देंगे...लेकिन इसके साथ सरकार को जो आप देंगे, उसके लिए ही तो कांग्रेस ने गोटियां बिछा रखी हैं...आप सरकार की सारी गलतियां भूल जाएंगे...आप सरकार को फिर से सर आंखों पर बिठाएंगे...फिर से चुनाव होगा, आपका हाथ कांग्रेस के साथ होगा...भ्रष्टाचार के खिलाफ आपको एक शस्त्र मिल जाएगा...आप लड़िएगा उसके साथ भ्रष्टाचार मिटाने को...सरकार शासन करेगी....और अगले कई सालों तक आप कुछ नहीं बोल पाएंगे..क्योंकि आप जब बोलेंगे, सरकार कहेगी हथियार मांगा था, दे तो दिया... अब लड़ो...और आप खामोश हो जाएंगे....बस यही तो चाहती है सरकार...और शायद उसी खामोशी के पहले का शोरगुल है अन्ना का आंदोलन...



अन्ना हजारे देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपनी पूरी टीम के साथ लगे हुए हैं...जाहिर है इरादा नेक है शायद यही वजह है कि देश उनके साथ खड़ा है...लेकिन क्या जो दिख रहा है वही सच है...क्या सच में देश से भ्रटाचार खत्म हो जाएगा...क्या भ्रष्टाचारियों की कांग्रेस का सत्ता से सफाया हो जाएगा...सवाल बहुत से हैं...देश को उम्मीदें भी बहुत हैं....लेकिन ये उम्मीद फिलहाल सपना भर है...और पूरा होने से पहले सपने को सच का तमगा नहीं दिया जा सकता...जानिए सरकार और अनशन का सच मेरी नजर से....


कुछ सवाल

क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने पर सिर्फ कांग्रेस का ही नुकसान है ?
क्या न्यायपालिका कांग्रेस की है जो उसे शामिल करने पर उसे तकलीफ हो रही है ?
क्या सरकार अन्ना के आंदोलन का अंजाम नहीं समझ पा रही है ?
क्या सरकार पूरी तरह से कन्फ्यूज है कि क्या करें, क्या ना करें ?

ऐसे ही ढेरों सवाल हैं...लेकिन जवाब सिर्फ एक है...सरकार का कोई भी कदम कोई भी बयान महज झल्लाहट में उठाया नहीं है...इसके पीछे एक पूरी गणित चल रही है...गणित खुद को न सिर्फ बचाने की बल्कि देश के लोगों में खुद को फिर से स्थापित करने की...
जरा सोचिए आपातकाल में गिरफ्तार किए नेताओं को जब जेल की बजाय गेस्ट हाउस में रखा गया...तो अन्ना को जेल में रखने की जरूरत क्या थी...पिछले कई मामलों में मीडिया को मैनेज करने वाली सरकार इस बार क्यों नहीं मैनेज कर पा रही है...जबकि पहली बार मीडिया सरकार के खिलाफ एक पार्टी बनती दिख रही है...इसके पीछे सरकार को अपना हित दिख रहा है...
दरअसल कांग्रेस जानती है कि भ्रष्टाचार और महंगाई ने देश के लोगों को उससे दूर कर दिया है....ऐसे में अगर अन्ना का आंदोलन नहीं भी होता तो भी कांग्रेस की अगले चुनावों में सत्ता वापसी मुश्किल थी...बस सरकार ने इसी से बचने का रास्ता निकाला...और कांटे से कांटे निकालने में जुट गई है...और अन्ना का पूरा आंदोलन और सरकार का हमला इस सियासी बिसात की छोटी सी चाल भर है...सरकार बड़े ही धैर्य के साथ एक एक चाल चल रही है....ताकि चेक और मेट से पहले जीत सुनिश्चित हो जाए...

सोमवार, 11 जुलाई 2011

गिरफ्तार करो...


वो गुनहगार है, कातिल है
गिरफ्तार करो
वो घूमता है खुलेआम
गिरफ्तार करो
वो जानता है कत्ल करने के तरीके ढेरों
वो प्यार से लेता है सबकी जान
गिरफ्तार करो
उसके पास जान लेने के औजार बहुत सारे हैं
जिन्हें वो मारता है, सभी उसके प्यारे हैं
वो छोड़ता नहीं है, कत्ल का कोई भी सुराग
पर मैं जानता हूं, वो कातिल है
गिरफ्तार करो


उसकी आंखों में तेज धार एक कटारी है
उसकी जुबान पर मीठी सी छुरी प्यारी है
वो जिसे चाहे, कुछ इस तरह नचाता है
जैसे यमदूत मौत बनकर पास आता है
वो मार डालेगा सबको
गिरफ्तार करो
वो गुहगार है, कातिल है
गिरफ्तार करो

बुधवार, 29 जून 2011





दास्तान-ए-चवन्नी
मैं चवन्नी हूं...मैं अगर रुपए से निकाल ली जाती थी ...तो रुपया अधूरा रह जाता था....लोगों की जेब में लंबे वक्त मेरा राज रहा है...यकीन नहीं हो तो अपने बड़े-बूढ़ों से पूछ लो...मुझे लेकर वो अपने बच्चों के साथ पूरे मेले की शान का नजारा करते थे...मुझे खर्च करके वो खान पान भी कर लिया करते थे...हालांकि मुझसे छोटे भाई बहन भी थे...जो पहले ही मिटा दिए गए....लेकिन उनके मिटने का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा...क्योंकि मेरी अहमियत कुछ खास थी...मैं रुपए का चौथा हिस्सा थी...लेकिन अब मेरा अंतिम वक्त पास है....वैसे पितामह भीष्म की तरह शैय्या पर लेटकर अपने मरने का इंतजार तो मैं बहुत पहले से कर रही थी...लेकिन मौत इतनी पीड़ा दायक होगी ये मैनें सोचा नहीं था...मुझे मिटाने वालों ने मुझे खत्म करने से पहले ये भी नहीं सोचा, कि ना जाने कितनी बार रुपए में मुझे मिलाकर उन्होंने खुद औऱ परिवार की तरक्की के लिए सवा रुपए का प्रसाद चढ़ाया होगा ....मरने से पहले ना जाने क्यों पुरानी बातें याद आने लगी हैं...मुझे कई बार नीचा दिखाने की कोशिश की गई...समाज में सबसे निकम्मे को मेरा नाम दिया गया और कह दिया चवन्नी छाप...मैं इस अपमान का घूंट पीकर भी जिन्दा रही...क्योंकि मुझे पता था मेरा अतीत...मेरा गौरवशाली अतीत....आज के ज़माने के लोग क्या जानेंगे कि मैंने भी आजादी के लिए लड़ाई की है... महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिए मेरा सहारा लिया...और मैं ही थी उस वक्त सदस्यता की कीमत...उस समय मेरे साथ गांधी का नाम जोड़कर एक नारा भी दिया गया था...'खरी चवन्नी चांदी की, जय बोल महात्मा गांधी की'...आजादी की लड़ी ही वजह थी कि मुझे अंग्रेजों की टकसाल का बंदी बनाया गया...और मुझ पर अंग्रेजी छाप लगा दी गई...मुझे याद है आजादी को वो दिन भी...जब देश झूम रहा था....लेकिन मैं फिर भी अंग्रेजों की बंदी बनी रही...हालांकि जल्द ही लोगों को मेरी सुध आ गई...और आजादी के दस साल बाद 1957 में मुझे अंग्रेजों की दासता से मुक्त करा लिया गया....यही वो दौर था जब कागजों पर मुझे नया नाम भी मिला...इंडियन क्वाइंज एक्ट-1906 में बदलाव करते हुए मेरा नया नाम रखा गया पच्चीस पैसा...क्या दिन थे वो...इसके बाद तो देश में मेरा कद और बढ़ गया...मैं लोगों की आंखों का सपना बन गई...हालांकि कुछ जलने वालों ने उस वक्त भी मुझे मारने की साजिश रचते हुए मुझ पर 1968 में जानलेवा हमला किया था...जिससे उबरने में मुझे चार साल लगे...चार साल बाद 1972 में मैं फिर से आई...और मेरा खूब मान सम्मान हुआ...यही वजह है कि मुझे 1982 में हुए एशियाड खेलों का प्रतीक बनाया गया...मुझे वो दिन भी याद है जब मुझे स्टेनलेस स्टील के कपड़े मिले थे...साल 1988.....क्या दिन थे वो...अब जब अंत समय आ गया है...अनायास ही पुरानी बातें याद आ रही हैं...मेरी आंखों में आंसू है...बहुत लंबा वक्त बिताया है मैंने आपके साथ...अब इजाजत दीजिए एक वादे के साथ...खुद मुझे याद रखिएगा...और अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताइएगा.... कितनी प्यारी थी चवन्नी...

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

हे भगवान ! ये क्या हो गया


तुम जानते थे कि क्या होने वाला है
क्या हो रहा है, ये भी तुमसे छिपा नहीं था
सबकुछ होने में रजा थी तुम्हारी
तुम्हारी जिद थी
तुम साथ चले, साथ ही विश्राम किया
एक वो दौर भी था, जब मैं तुम्हारी सोच बना
लेकिन
तुम सबको झुठलाते रहे
तुम्हें लगा मैं सबकुछ भूल जाऊंगा
तुम्हारा प्यार, तुम्हारा दुत्कार
और खुद तुम्हें भी
लेकिन
तुम मेरे लिए कोई कोर्स नहीं थे
जिसे परीक्षा में पास होने के लिए याद करना था
तुम मन थे मेरे
जिसके बिना जिंदा लाश हूं मैं
तुमने छोड़ दिया मुझे
मैं खामोश हूं
तुम्हें दगाबाज भी तो अब नहीं कह सकता
तुन्हारे सामने तो कई बार कहा है
लेकिन
अब लब साथ नहीं देंगे
लेकिन
गुनाह तो हुआ है मेरे साथ
और हुआ है, तो गुनहगार भी होगा
तुम नहीं तो कौन ?
चलो तुम्हारी ही जुबान में कहता हूं
हे भगवान ! ये क्या हो गया