बुधवार, 15 अगस्त 2012

HAPPY INDEPENDENCE DAY

आजादी का जश्न मनाओ, बाद साल ये आई है।
बाकी दिन रुसवाई के हैं, मुंह खोले महंगाई है।।
इन आंखो को गौर से देखो, इनमें अब नहीं शिकायत है।
नीयत मान चुकी लाचारी, गम तो अब फर्ज अदाई है।।
घर-बार सबकुछ तो लुट गया, एक जान ही बस, बच पाई है।
लूटने वाले अब भी भूखे, इस मुल्क में यही खुदाई है।।
फिर भी अपना जिगर तो देखो, साथ खड़े हैं झंडे के।
शान तिरंगा है अपना, सबको ही आज बधाई है।।
उम्मीदों का दामन ऐसा, हाथ सरकता जाता है।
फिर भी आस लगी है उस पर, ये कैसी पेंच फंसाई है।।
हर झूठे वादों का सच, कड़वा भी था, मीठा भी था।
थाली में रोटी नहीं सही, सरकार को याद तो आई है।।
सपनों की बातें भी अक्सर, बोध है सच हो जाती हैं।
लेकिन भूखे पेट किसी को, नींद भी कब आ पाई है ।।

रविवार, 21 अगस्त 2011

खामोशी से पहले का शोरगुल ?






एक आसान सी बात है कि जब घाव मामूली हो तो बिना मरहम के भी रहा जा सकता है...लेकिन जब पीड़ा असहनीय हो तो दवा के लिए बेचैनी बढ़ जाती है...हर दवा इस्तेमाल की जाती है...भले वो दर्द खत्म करने की बजाय थोड़ा कम करने वाली ही क्यों न हो...यही पूरा फार्मूला है सरकार का...जो पूरे अन्ना प्रकरण में अपनाया गया है....सरकार भ्रष्टाचार रूपी इस घाव को इतना बड़ा कर देना चाहती है कि जनता त्राहीमाम कर दे...ऐसे में घाव भरने की दवा के बजाय दर्द कम करने की दवा भी कारगर साबित होगी...सरकार ने इसके लिए तैयारी भी शुरु कर दी है...कांग्रेस की मुखिया देश के बाहर हैं...लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि वो पूरे मामले से अनभिज्ञ हैं...उन्हें पल पल की खबर है...लेकिन वो मौन हैं....क्योंकि यही मौन तो विजय का मूलमंत्र है...मैडम आंएगी और बोलेंगी भी...लेकिन थोड़ा वक्त दीजिए...अभी अपने दर्द को और बढाइए...अभी पूरे देश का ध्यान इस पर आने दीजिए...इतना, कि हर तबाही इस मुहिम के आगे छोटी नजर आने लगे...फिर देखिए..एक चमत्कार होगा...मैडम आएंगी, और सरकार की तरफ से की गई सभी गलतियों का अफसोस मनाते हुए सबको शटअप कर देंगी...हो सकता है सारा ठिकरा मनमोहन पर फोड़कर राहुल बेटे को कुर्सी सौंप दी जाए...जो आपको आपका बिल देने पर राजी हो जाएंगे...और इस उदारता के बदले आप भी थोड़े बहुत संशोधन की इजाजत तो दे ही देंगे...लेकिन इसके साथ सरकार को जो आप देंगे, उसके लिए ही तो कांग्रेस ने गोटियां बिछा रखी हैं...आप सरकार की सारी गलतियां भूल जाएंगे...आप सरकार को फिर से सर आंखों पर बिठाएंगे...फिर से चुनाव होगा, आपका हाथ कांग्रेस के साथ होगा...भ्रष्टाचार के खिलाफ आपको एक शस्त्र मिल जाएगा...आप लड़िएगा उसके साथ भ्रष्टाचार मिटाने को...सरकार शासन करेगी....और अगले कई सालों तक आप कुछ नहीं बोल पाएंगे..क्योंकि आप जब बोलेंगे, सरकार कहेगी हथियार मांगा था, दे तो दिया... अब लड़ो...और आप खामोश हो जाएंगे....बस यही तो चाहती है सरकार...और शायद उसी खामोशी के पहले का शोरगुल है अन्ना का आंदोलन...



अन्ना हजारे देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपनी पूरी टीम के साथ लगे हुए हैं...जाहिर है इरादा नेक है शायद यही वजह है कि देश उनके साथ खड़ा है...लेकिन क्या जो दिख रहा है वही सच है...क्या सच में देश से भ्रटाचार खत्म हो जाएगा...क्या भ्रष्टाचारियों की कांग्रेस का सत्ता से सफाया हो जाएगा...सवाल बहुत से हैं...देश को उम्मीदें भी बहुत हैं....लेकिन ये उम्मीद फिलहाल सपना भर है...और पूरा होने से पहले सपने को सच का तमगा नहीं दिया जा सकता...जानिए सरकार और अनशन का सच मेरी नजर से....


कुछ सवाल

क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने पर सिर्फ कांग्रेस का ही नुकसान है ?
क्या न्यायपालिका कांग्रेस की है जो उसे शामिल करने पर उसे तकलीफ हो रही है ?
क्या सरकार अन्ना के आंदोलन का अंजाम नहीं समझ पा रही है ?
क्या सरकार पूरी तरह से कन्फ्यूज है कि क्या करें, क्या ना करें ?

ऐसे ही ढेरों सवाल हैं...लेकिन जवाब सिर्फ एक है...सरकार का कोई भी कदम कोई भी बयान महज झल्लाहट में उठाया नहीं है...इसके पीछे एक पूरी गणित चल रही है...गणित खुद को न सिर्फ बचाने की बल्कि देश के लोगों में खुद को फिर से स्थापित करने की...
जरा सोचिए आपातकाल में गिरफ्तार किए नेताओं को जब जेल की बजाय गेस्ट हाउस में रखा गया...तो अन्ना को जेल में रखने की जरूरत क्या थी...पिछले कई मामलों में मीडिया को मैनेज करने वाली सरकार इस बार क्यों नहीं मैनेज कर पा रही है...जबकि पहली बार मीडिया सरकार के खिलाफ एक पार्टी बनती दिख रही है...इसके पीछे सरकार को अपना हित दिख रहा है...
दरअसल कांग्रेस जानती है कि भ्रष्टाचार और महंगाई ने देश के लोगों को उससे दूर कर दिया है....ऐसे में अगर अन्ना का आंदोलन नहीं भी होता तो भी कांग्रेस की अगले चुनावों में सत्ता वापसी मुश्किल थी...बस सरकार ने इसी से बचने का रास्ता निकाला...और कांटे से कांटे निकालने में जुट गई है...और अन्ना का पूरा आंदोलन और सरकार का हमला इस सियासी बिसात की छोटी सी चाल भर है...सरकार बड़े ही धैर्य के साथ एक एक चाल चल रही है....ताकि चेक और मेट से पहले जीत सुनिश्चित हो जाए...

सोमवार, 11 जुलाई 2011

गिरफ्तार करो...


वो गुनहगार है, कातिल है
गिरफ्तार करो
वो घूमता है खुलेआम
गिरफ्तार करो
वो जानता है कत्ल करने के तरीके ढेरों
वो प्यार से लेता है सबकी जान
गिरफ्तार करो
उसके पास जान लेने के औजार बहुत सारे हैं
जिन्हें वो मारता है, सभी उसके प्यारे हैं
वो छोड़ता नहीं है, कत्ल का कोई भी सुराग
पर मैं जानता हूं, वो कातिल है
गिरफ्तार करो


उसकी आंखों में तेज धार एक कटारी है
उसकी जुबान पर मीठी सी छुरी प्यारी है
वो जिसे चाहे, कुछ इस तरह नचाता है
जैसे यमदूत मौत बनकर पास आता है
वो मार डालेगा सबको
गिरफ्तार करो
वो गुहगार है, कातिल है
गिरफ्तार करो

बुधवार, 29 जून 2011





दास्तान-ए-चवन्नी
मैं चवन्नी हूं...मैं अगर रुपए से निकाल ली जाती थी ...तो रुपया अधूरा रह जाता था....लोगों की जेब में लंबे वक्त मेरा राज रहा है...यकीन नहीं हो तो अपने बड़े-बूढ़ों से पूछ लो...मुझे लेकर वो अपने बच्चों के साथ पूरे मेले की शान का नजारा करते थे...मुझे खर्च करके वो खान पान भी कर लिया करते थे...हालांकि मुझसे छोटे भाई बहन भी थे...जो पहले ही मिटा दिए गए....लेकिन उनके मिटने का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा...क्योंकि मेरी अहमियत कुछ खास थी...मैं रुपए का चौथा हिस्सा थी...लेकिन अब मेरा अंतिम वक्त पास है....वैसे पितामह भीष्म की तरह शैय्या पर लेटकर अपने मरने का इंतजार तो मैं बहुत पहले से कर रही थी...लेकिन मौत इतनी पीड़ा दायक होगी ये मैनें सोचा नहीं था...मुझे मिटाने वालों ने मुझे खत्म करने से पहले ये भी नहीं सोचा, कि ना जाने कितनी बार रुपए में मुझे मिलाकर उन्होंने खुद औऱ परिवार की तरक्की के लिए सवा रुपए का प्रसाद चढ़ाया होगा ....मरने से पहले ना जाने क्यों पुरानी बातें याद आने लगी हैं...मुझे कई बार नीचा दिखाने की कोशिश की गई...समाज में सबसे निकम्मे को मेरा नाम दिया गया और कह दिया चवन्नी छाप...मैं इस अपमान का घूंट पीकर भी जिन्दा रही...क्योंकि मुझे पता था मेरा अतीत...मेरा गौरवशाली अतीत....आज के ज़माने के लोग क्या जानेंगे कि मैंने भी आजादी के लिए लड़ाई की है... महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिए मेरा सहारा लिया...और मैं ही थी उस वक्त सदस्यता की कीमत...उस समय मेरे साथ गांधी का नाम जोड़कर एक नारा भी दिया गया था...'खरी चवन्नी चांदी की, जय बोल महात्मा गांधी की'...आजादी की लड़ी ही वजह थी कि मुझे अंग्रेजों की टकसाल का बंदी बनाया गया...और मुझ पर अंग्रेजी छाप लगा दी गई...मुझे याद है आजादी को वो दिन भी...जब देश झूम रहा था....लेकिन मैं फिर भी अंग्रेजों की बंदी बनी रही...हालांकि जल्द ही लोगों को मेरी सुध आ गई...और आजादी के दस साल बाद 1957 में मुझे अंग्रेजों की दासता से मुक्त करा लिया गया....यही वो दौर था जब कागजों पर मुझे नया नाम भी मिला...इंडियन क्वाइंज एक्ट-1906 में बदलाव करते हुए मेरा नया नाम रखा गया पच्चीस पैसा...क्या दिन थे वो...इसके बाद तो देश में मेरा कद और बढ़ गया...मैं लोगों की आंखों का सपना बन गई...हालांकि कुछ जलने वालों ने उस वक्त भी मुझे मारने की साजिश रचते हुए मुझ पर 1968 में जानलेवा हमला किया था...जिससे उबरने में मुझे चार साल लगे...चार साल बाद 1972 में मैं फिर से आई...और मेरा खूब मान सम्मान हुआ...यही वजह है कि मुझे 1982 में हुए एशियाड खेलों का प्रतीक बनाया गया...मुझे वो दिन भी याद है जब मुझे स्टेनलेस स्टील के कपड़े मिले थे...साल 1988.....क्या दिन थे वो...अब जब अंत समय आ गया है...अनायास ही पुरानी बातें याद आ रही हैं...मेरी आंखों में आंसू है...बहुत लंबा वक्त बिताया है मैंने आपके साथ...अब इजाजत दीजिए एक वादे के साथ...खुद मुझे याद रखिएगा...और अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताइएगा.... कितनी प्यारी थी चवन्नी...

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

हे भगवान ! ये क्या हो गया


तुम जानते थे कि क्या होने वाला है
क्या हो रहा है, ये भी तुमसे छिपा नहीं था
सबकुछ होने में रजा थी तुम्हारी
तुम्हारी जिद थी
तुम साथ चले, साथ ही विश्राम किया
एक वो दौर भी था, जब मैं तुम्हारी सोच बना
लेकिन
तुम सबको झुठलाते रहे
तुम्हें लगा मैं सबकुछ भूल जाऊंगा
तुम्हारा प्यार, तुम्हारा दुत्कार
और खुद तुम्हें भी
लेकिन
तुम मेरे लिए कोई कोर्स नहीं थे
जिसे परीक्षा में पास होने के लिए याद करना था
तुम मन थे मेरे
जिसके बिना जिंदा लाश हूं मैं
तुमने छोड़ दिया मुझे
मैं खामोश हूं
तुम्हें दगाबाज भी तो अब नहीं कह सकता
तुन्हारे सामने तो कई बार कहा है
लेकिन
अब लब साथ नहीं देंगे
लेकिन
गुनाह तो हुआ है मेरे साथ
और हुआ है, तो गुनहगार भी होगा
तुम नहीं तो कौन ?
चलो तुम्हारी ही जुबान में कहता हूं
हे भगवान ! ये क्या हो गया

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

शादी क्यों कर लेती हैं खूबसूरत लड़कियां ?



आपको अटपटा जरूर लग रहा होगा, सोच रहे होंगे कि अजब बेवकूफाना सी बात है..लेकिन हकीकत कुछ ऐसी है...मैं क्या करूं सोच ही ऐसी है...मेरा बस चले तो किसी खूबसूसत लड़की की शादी ही नही होने दूं....आप फिर सोचेंगे कि मैं कितनी घटिया सोच वाला इंसान हूं....लेकिन मैं ऐसा अपने लिए नहीं कह रहा हूं...बल्कि मैं तो खूबसूरत लड़कियों के पक्ष की बात बोल रहा हूं...अब आप ही सोचिए कि शादी से पहले खूबसूरत लड़की के दीवाने कितने होते हैं...हर गली, मोहल्ले में लोग उसके आने जाने का वक्त तकते रहते हैं...उसकी प्यार भरी एक आंख भर उठ जाए तो कई जैकपॉट जीतने का नशा हो जाता है...उस दिन किसी काम में मन नहीं लगता...हर तरफ सिर्फ वो आंखे ही नजर आती हैं....और रात भी उन आंखों को देखते देखते आंखों आखों में बीत जाती है...और अगर उसने प्यार से एक शब्द भी कह दिया, तो कान में पंडित शिव कुमार शर्मा के संतूर की मिठास गूंजने लगती है...हांलाकि इसमें एक लोचा भी है...वो ये, कि ऐसी लड़कियों के मुंह से जो पहला शब्द निकलता है, वो भईया ही होता है...लेकिन हम लोग यानी खूबसूरती के प्रशंसक तो जानते ही हैं...कि आखिर सबके सामने बुलाएगी भी तो क्या कहकर...इसलिए भईया शब्द पर हमलोग ध्यान ही नहीं देते...इसको कुछ इसी तरह से स्वीकार करते हैं....जैसे साला शब्द गाली होते हुए भी गाली की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाता...और अगर वही लड़की शादी कर ले, तो उसका चाहने वाला सिर्फ उसका पति ही होता है...वो भी कुछ दिनों तक...और उसके सारे चाहने वाले सिर्फ उसकी चाहत का ही त्याग नहीं करते...बल्कि उसके दुश्मन भी बन जाते हैं...अब उसी मुहल्ले में हमें उसकी आखों में दगाबाजी नजर आती है...शब्दों से सियार की हूं हूं की आवाज सुनाई देती है...पता नहीं ऐसा क्यों कर लेती हैं ये खूबसूरत लड़कियां...अरे बीच का रास्ता भी तो निकल सकता है...अगर शादी करना इतना ही जरूरी है...तो करिए न, कौन रोक रहा है...लेकिन थोड़ा उम्र का ख्याल करके कीजिए... पचास के पार होते ही शादी कर लिए हम कुछ नहीं कहेंगे...आशिकी की कसम...क्योंकि हमको अपने टैलेंट पर पूरा भरोसा है...कि तब तक हम किसी कमसिन को तो खोज ही लेगें...


ताजा मामला सानिया का है, शोएब से शादी की चर्चा क्या हुई, शुरु हो गया हंगामा...लोग खफा हैं कि सौ करोड़ से ऊपर की आबादी वाले देश में उसे कोई नहीं मिला..जो पाकिस्तानी से शादी करने जा रही है....मैं भी इस बात से बेहद दुखी हूं...और दुख दूर करने के लिए ऐसे भगवान को बीच में ला दिया हूं...जिनका शादी वादी से कोई खास सरोकार नहीं है...जी हां आप सही सोच रहे हैं, सीधे बजरंग बली से शादी रुकवाने के लिए बोल दिया है...अब मामला शादी ब्याह का है तो देखिए कितना इन्ट्रेस्ट लेते हैं...अब शादी हो गई तो समझिएगा की इन्ट्रेस्ट नहीं लिया...और नहीं हुई तो आप जानते ही हैं कि मेरी बात वो कभी नहीं टालते...लेकिन मैं थोड़ा परेशान भी हूं...सोचता हूं कि अगर, सानिया की शादी टल गई तो भी किसी न किसी से तो शादी होगी ही...और ये भी तय है कि मुझसे तो होने से रही...तो दुख तो बना ही रहेगा...जिसे मेरा नहीं होना है....क्या फर्क पड़ता है कि वो किसकी हो रही है...इसलिए मेरे दिमाग में एक स्कीम आई है...कि क्यों न उसकी शादी परमानेंटली रुकवाने की कोशिश की जाए...क्योंकि वो किसी की हो जाए ये तो मैं बर्दाश्त ही नहीं कर सकता...ऐश्वर्या के बाद बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाला है...ऐसा न हो की इस बार टूट के बिखर ही जाऊं...अब उस दिन की ही बात लीजिए जब सोहराब मिर्जा से सगाई हो रही थी...मुझे तो दिन भी याद है दस जुलाई...मैं कितना बेचैन था...लग रहा था कि कोई मेरी सांस खींच रहा हो...मै अधमरा सा हो गया था...कई महीने तक लगा कोमा में हूं...किसी काम में मन ही नहीं लगा पा रहा था...लेकिन शुक्र है कि सानिया को अक्ल आ गई...या यूं कहें कि मेरी तकलीफ उससे भी नहीं देखी गई..और आखिरकार जनवरी में उसने सगाई तोड़ ही दी...तबसे मैं कितना खुश था...आप सोच भी नहीं सकते...लेकिन बीच में फिर से आ गया मुआं शोएब...लुच्चा कहीं का...सानिया अगर ऐसे ही रहे तो कितना अच्छा होगा...और आपको क्या लगता है हमलोगों को आएशा से कोई हमदर्दी है...अजी बिल्लकुल नहीं...उसको तो हम हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं...आपने तो सुना ही होगा कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है...रही बात सानिया कि वो तो भगवान न करें कभी दुश्मन बने...अभी भी उससे मेरी दुश्मनी थोड़े ही है...बस थोड़ी सी नाराजगी भर है,...यकीन मानिए जल्द ही खत्म हो जाएगी..अपने हाल पर मुझे एक बहुत ही बेहतरीन गीत याद आ रहा है, आप भी तबज्जो दीजिएगा...

तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं,
तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी

लेकिन इसी गाने की जो अगली लाइन है, वही मेरी प्रेरणा है...मेरी ऊपर की सारी बकैतियों का लब्बो लुआब उसी में है...हो सकता मैं अपनी बात आपको अभी तक समझा नहीं पाया हूं...तो कोई बात नहीं लाइन पढ़िए समझ में आ जाएगा...

ये सहारा ही बहुत है मेरे जीने के लिए
तुम अगर अपनी नहीं तो पराई भी नहीं
अब आप ही सोचिए, कि मैं सानिया को कैसे मान लूं कि वो पराई है... बस शादिया मत होने दीजिएगा...और सानिया ही क्या, किसी भी खूबसूरत लड़की की शादी अगर आप रुकवा सकें...तो प्लीज कोशिश कीजिए...क्योंकि मेरे जैसे तो लाखों सनम हैं...

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

सुनो ! क्या चाहती है बिटिया





आम बजट । एक ऐसा शब्द जो शब्दों से हटकर सबकुछ है... शब्द भले ही आम हो लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि ये खास लोगों को प्रभावित नहीं करता....खूब करता है, बल्कि यूं कहें कि कभी कभी कुछ खास लोगों पर अनुकूल प्रभाव डालता है, और कभी कभी प्रतिकूल तो ज्यादा बेहतर होगा...जहां तक आम लोगों की बात है, तो इसके नाम से ही आपको लग गया होगा कि ये आम लोगों के लिए है...और हकीकत भी कुछ ऐसा ही है...अंतर सिर्फ इतना है कि पूरे बजट में आम इंसान का केवल जिक्र भर ही होता है....फिक्र तो कहीं दिखता ही नहीं....खैर मैं मुख्य विषय से भटक गया...और बजट जैसे गूढ़ विषय पर बात करने लगा .....दरअसल मैं आज बात करने जा रहा हूं चाहतों की...नहीं नहीं, वो चाहत नहीं जो आप समझ रहे हैं...बल्कि हम बात कर रहे हैं उस चाहत की, जो इस बजट में लोग वित्त मंत्री से चाहते हैं...आप भी कुछ चाह रहे होंगे, हम भी कुछ चाह रहे हैं...लेकिन बात एक खास शख्सियत के चाहत की...जो अजीब है....अजीब इसलिए कि इस चाहत में एक ऐसी मांग शामिल है , जिसकी मांग आज से पहले किसी ने भी वित्त मंत्रालय से नहीं की....
शरमिष्ठा मुखर्जी । मशहूर कथक डांसर और प्रणब मुखर्जी की पुत्री...वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की पुत्री...हर नागरिक की ही तरह शरमिष्ठा को भी इस बजट से कुछ उम्मीदे हैं..और वो चाहती हैं कि वित्त मंत्री उसे पूरा करें...और इसीलिए उन्होने वित्त मंत्री के लिए एक खुला पत्र लिखा है...जिसमें उन्होंने अपनी मांगें लिखी है...अब सवाल ये उठता है, कि वित्त मंत्री की पुत्री को अपनी किसी मांग को मंगवाने के लिए पत्र लिखने की क्या जरूरत है...तो इसका जवाब भी शरमिष्ठा ने खुद लिखा है...उन्होंने लिखा है कि घर में मैंने कई बार अपने पिता से इस बारे में बात करनी चाही...लेकिन हर बार उनकी फौलादी निगाहों ने मुझे डरा दिया...और मैं कुछ भी नहीं कह सकी...इसीलिए ये खुला पत्र लिख रही हूं। अपने पत्र में उन्होने कलाकारों के लिए कई तरह की सहूलियतों की मांग की है...और कहा है कि मुझ जैसे कलाकारों पर टैक्स को कम करना चाहिए....लेकिन हमें शरमिष्ठा की इन मांगो से कोई खास सरोकार नहीं है...क्योंकि ऐसी मांग तो हर कोई अपने लिए करता है...खुद हम तो अपनी सहुलियतें चाहते हैं.... लेकिन शरमिष्ठा ने जो आगे मांग की है वो कुछ खास है....
दरअसल शरमिष्ठा चाहती हैं कि उनके वित्त मंत्री पिता इस बार के बजट में जानवरों पर भी टैक्स लगाएं...मतलब जानवरों से टैक्स वसूलें...वो भी 90 से 95 फीसदी तक...आप सोच रहे होंगे कि आखिर जानवर कैसे और कहां से टैक्स देंगे...तो हम बताते हैं कि कैसे होगा ये सब...इसके लिे आप खुद ही पढ़ लीजिए की क्यालिका है शरमिष्ठा ने....और क्या है शरमिष्ठा की मांग....

मेरी वित्त मंत्री से मांग है कि 90 से 95 प्रतिशत टैक्स उन जानवरों से वसूला जाना चाहिए, जो दिल्ली और एनसीआर की सड़कों पर खुलेआम घूमते हैं। जिनकी जिंदगी का इकलौता मकसद सड़क पर महिलाओं की गाड़ियों का पीछा करना, और उन्हें तंग करना है ” (शरमिष्ठा मुखर्जी )

जी हां... शर्मिष्ठा परेशान हो चुकी हैं, लम्बी-चौड़ी गाड़ियों में बैठकर लड़कियों का पीछा करने और उन्हें छेड़नेवाले रईसजादों से... वैसे शर्मिष्ठा की ये मांग उन लोगों के लिए भी है, जिनके पास लम्बी गाड़ियां तो नहीं, लेकिन हरकतें बिगड़ैल रईसजादों से कम नहीं...

इस तरह का टैक्स सड़कों पर घूमने वाले रोड साइड रोमियो पर भी लगना चाहिए। और साथ ही वैसे लोगों पर भी, जो महिलाओं के साथ छेड़खानी करते हैं ” (शरमिष्ठा मुखर्जी )

आपको लग रहा होगा, कि ये एक बेटी की मांग अपने पिता से है... लेकिन ऐसा नहीं है... ये महज मांग नहीं है...ये एक त्रासदी है जो बयां करती है महिलाओं के हालात को...ये सवाल के कटघरे में खड़ा करती है उस सरकार को...जिसकी जिम्मदारी है महिलाओं की सुरक्षा की, और साथ ही सच्चाई भी बताती है व्यवस्था के नाकामी की.... ये मांग बताती है कि महिलाएं कितनी परेशान हैं, कितनी त्रस्त हैं...और इतनी डरी हुई हैं कि उन जानवरों से छुटकारा पाने के लिए वो किसी से कुछ भी मांगने को मजबूर हैं...शरमिष्ठा जानती हैं कि किसी की सुरक्षा की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की नहीं है...लेकिन क्या करें, जिसकी है वो तो कुछ कर नहीं रहा...सो सोचा वित्त मंत्रालय से ही मांग ले...पिता हैं शायद सुरक्षा की गारंटी मिल जाए.... शर्मिष्ठा की ये मांग देशभर में खासकर देश की राजधानी में महिलाओं की बदहाली बखूबी बयां करती है...ये मांग इसलिए भी खास है कि ये शरमिष्ठा ने मांगा है.....आप खुद ही सोचिए कि देश के वित्त मंत्री की बेटी अगर इन जानवरों से इस कदर परेशान है...तो आम महिलाओं का क्या हाल होता होगा....और वो किसे अपना फरियाद सुनाती होंगी,.....और कौन सुनता होगा उनके इस ‘ बकवास ’ को कि...सड़कछाप मजनुओं ने जीन मुहाल कर रखा है...