रविवार, 12 अक्टूबर 2008

' रिंकी और रिंकू का साथ '



पिछले कुछ दिनों से मैं बहुत परेशान हूं…दुनिया भर में आर्थिक तंगी है...बावजूद इसके हमारी सरकार सबके लिए कुछ न कुछ कर रही है....पर मेरे लिए कुछ हो ही नहीं रहा है....वैसे मुझे इस बात की तकलीफ कम है कि मेरे लिए कुछ नहीं हो रहा है...इस बात का गम ज्यादा कि दूसरों पर मेहरबानी होती जा रही है....छठे वेतन आयोग की सिफारिशे लागू कर दी गईं....कर्मचारियों के लिए दिवाली के बोनस का ऐलान हो रहा है....क्रीमीलेयर की सीमा भी बढ़ा दी गई....रिजर्वेशन कोटे की सीटों को खाली रखने का फरमान लागू हो गया....लेकिन इनमे से किसी दायरे में मैं नहीं आता..सो मैं तो अपने आपको ठगा सा ही महसूस कर रहा हूं...लेकिन पिछले एक हफ्ते से मैं काफी खुश हूं..देर से ही सही सरकार को हमारी सुध आ गई...और कुछ दया दृष्टि हम पर भी होने वाली है....हांलाकि अभी इन खुशखबरियों पर कुछ जलने वाले लोगों को ऐतराज है...लेकिन साथ देने वालों के रुख से तो लग रहा है कि अंत में खुशखबरी मिल ही जाएगी....अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर कौन सी खबर है जिसने मुझे इतना खुश कर दिया कि मुझे दूसरों की खुशी से भी जलन नहीं हो रही है....तो सुनिए...सरकार अब कानून बनाने जा रही है...जिसके तहत हम असली आजादी पा सकेंगे...मतलब कि अब हम ' रिंकी और रिंकू ' दोनो के साथ कानूनन रह सकते हैं... इशारा तो आप समझ ही गए होंगे...विस्तार से बताता हूं...पहली खबर है समलैंगिकता को मान्यता देने की....यानि 'रिंकू' अब मेरे साथ रह सकता है...बिना किसी संकोच के...मामले पर बहस शुरु हो गई है...लेकिन कुछ लोग अभी भी इसके विरोध में लगे हैं.. उनको हमारी खुशी देखी नही जा रही है...उनको क्या मालूम साथ रहने का सुख....लेकिन गलती उनकी नहीं है...उम्र का तकाजा है....साठ के बाद इंसान सठिया ही जाता है...हम लोगों को उनकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए...जेनरेशन गैप तो होता ही है...समझाबुझा लिया जाएगा...एक झटके में इतने बड़े झटके से तो इंसान झटक ही जाता है....लेकिन हम आशन्वित हैं...आखिर कुछ नई सोच के लोगों ने हमारा झंडा जो थाम रखा है...हमें उम्मीद ही नहीं यकीन है कि रामदौस जी अबकी तो जंग जीत ही जाएंगे...हम जैसे लाखों लोगं की दुआएं उनके साथ हैं....वैसे हम लोगों के जंग जीतने की एक वजह यह भी है कि इसका विरोध करने वालो के पास कोई आधार नहीं है...भारतीय संस्कृति और सभ्यता को आधार बनाकर कब तक लड़ेंगे...अरे भाई...मॉर्डनाइजेशन भी कोई चीज होती है कि नहीं....दुनिया तरक्की कर रही है...और आप संस्कृति का रोना रो रहे हैं....अरे इसको लागू तो करिए धीरे-धीरे यही आपकी संस्कृति हो जाएगी....और इसमें गलती तो हम लोगों की है नहीं.. इसको बढ़ावा तो आप ही लोगों ने दिया है...घर से लेकर बाहर तक, जहां गए...लड़को को लड़कों के साथ रख दिया...लड़कियों को लड़कियों के साथ रख दिया...ऐसे मौके पर भावनाएं जागी और तोड़ गईं सारे बंधन ...पहले कुछ झिझक तो जरुर हुई, लेकिन अब तो आदत बन गई है औऱ मजबूरी भी....अब आप रोक लगाने की बात करोगो तो बगावत तो करुंगा ही....तभी थोड़ी सी समझदारी दिखाए होते ...और लड़के – लड़की में भेद ना किए होते ...तो यह दिन देखना ही क्यों पड़ता...अब तो भईया हम नहीं मानेगें...अंबुमणि जी बेस्ट ऑफ लक.....

अब बताते हैं आपको दूसरी खुशखबरी....जो बहुत खास है...और हमारी आजादी की तरफ बढ़ा एक और कदम....एक ऐसा कानून बनने जा रहा है...जो हमें वास्तव में सारे बंधनों से आजाद कर देगा और हम गर्व से कह सकेगें 'मेरी मर्जी'....मैं चाहे ये करुं...मैं चाहे वो करुं....मेरी मर्जी....न समाज का बंधन...न कानून का बंधन...न पंडित...न कोर्ट...न कचहरी...न पुलिस...न थाना...सबसे आजाद....किसी के साथ रहो...'पिंकी के साथ या रिंकी के साथ'....सरकार को कोई वास्ता नहीं...विवाह जैसे बोरियत भरे रस्म से भी आजादी ...और बिना मतलब के होने वाले खर्चों से भी आजादी...लेकिन दुश्मनों की कोई कमी तो होती नहीं है...सो हमारी यह खुशी भी उनको बर्दाश्त नहीं हो सकी...करने लगे मीन मेख....फिर वही संस्कृति और सभ्यता का रोना....अरे मार्डन बनो भाई मार्डन....कुछ देश तो इतने मार्डन हैं कि उनकी आधी आबादी ही हम जैसों की उपज है....न मां का पता ....न बाप का ठिकाना....जब जिसे चाहा मां बना लिया ...जिसे चाहा बाप कह दिया....इसको कहते हैं एकता...सारा देश अपना है ...और हम सारे देश के हैं.....लेकिन विरोधियों का हमें कोई डर नहीं है....विरोधी है, विरोध करना उनका अधिकार है....यहां तो हमको शिकायत महाराष्ट्र सरकार से है...मंजूरी तो दे दी...लेकिन छोड़ दिया थोड़ा सा नुख्स...कह दिया पर्याप्त समय तक साथ रहने वालों को ही मान्यता है...अब पर्याप्त क्या होता है भाई....हर इंसान के लिए पर्याप्त की परिभाषा अलग अलग है...सबकी अपनी-अपनी क्षमता है...अपनी –अपनी सोच है...और जिंदगी में सब कुछ हमारी सोच ही डिसाइड कराती है....अब कुछ लोग अपनी एक ही जिंदगी से त्रस्त हैं...बिचारे समझ ही में नहीं आ रहा है...कि जी रहे हैं कि मर रहे हैं...और एक मैं हूं... सोचता हूं ....इसी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लूं....कई जिंदगी जीने के लिए कई लोगों का साथ होना भी जरुरी है....और जब एक ही के साथ पर्याप्त समय बिताने लगेंगे तो कई जिंदगियों का क्या होगा...और ऊपर से एक और संकट है...मान जाइए एक के साथ ही कुछ लंबे अरसे तक सेटलमेंट कर भी लें ...और अचानक वो बिदक गई तो...हम कहां जाएंगे...रोक तो सकते नहीं ...न समाज का वास्ता देकर और न ही कानून का डर दिखाकर.... तो हम तो आ गए सड़क पर...लंबा समय जब एक ही के साथ गुजार लेंगे ....और हो जाएंगे उम्र दराज..तो इस ढ़ांचे को घास कौन डालेगा....तो मेरा तो यही सुझाव है कि इसमें थोड़ी सी फ्लैक्सीविलिटी की जरुरत है...लेकिन कुल मिलाकर मैं खुश हूं....और सरकार को धन्यवाद देना चाहूंगा और उनको भी मुबारकबाद जो एक साथ रहना चाहते हैं ' रिंकी और रिंकी के साथ'

1 टिप्पणी:

KK Yadav ने कहा…

अब कुछ लोग अपनी एक ही जिंदगी से त्रस्त हैं...बिचारे समझ ही में नहीं आ रहा है...कि जी रहे हैं कि मर रहे हैं...और एक मैं हूं... सोचता हूं ....इसी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लूं....कई जिंदगी जीने के लिए कई लोगों का साथ होना भी जरुरी है....और जब एक ही के साथ पर्याप्त समय बिताने लगेंगे तो कई जिंदगियों का क्या होगा ?
बड़ी सारगर्भित और दार्शनिक बात कही है. प्रयास जारी रखें. अच्छा लिख रहे हैं !!